लौटेंगे यहीं..मन के आकर्ष झुठलाएंगे कहां..
व्यथित होंगे.............तलाशेंगे तुम्हीं को..
वेदना हृदय की मिटाने को....मधुर मधुर..
कोमल कोमल वचनों के स्पर्श पाएंगे कहां..
आभासी होंगे प्रेम के रूप...और झूठे भी..
फिर भी हृदय जागेगा..कोलाहल के बीच ..
सुगंध सुबह की....यकीन के कलरव........
सदाबहार अनुग्रह ..आप छुपाएंगे कहां....
वीभस्त हो जाय भी तो क्या...ये व्यवहार..
किसी अर्थ का ना रहे प्रलय सम्मुख संसार..
फिर भी ..शेष की परिकल्पना का हर्ष लिए..
जीवन दर्शन के पर्व ..तुम बिन मनाएंगे कहां..
बहा देंगे ......मिटा देंगे..... प्राण भी गवां देंगे..
ये तो बहुत सहज सरस है..अवसान देह का...
पर जो अनंत है.........तुम्हारा मेरा संबंध.......
हां ये अनुबंध...... उसको दफनाएंगे कहां......
अनुबंध मन के...तोड़कर.... जाएंगे कहां......!!