ओ तीर के बैठईया...अब नही मिलोगे क्या ???


ओ तीर के बैठईया !
अब नहीं मिलोगे क्या ??
अब क्या हो गई अलग अलग नैय्या !!
उस पार हमें नहीं ले चलोगे क्या ??
ढूंढते थे हमें ..एक पल भी अलग होकर..
जीवन पथ के साथी..कैसे हो अलग होकर !!
तुमने तो विमान ले लिया ..अवसान ले लिया..
हम थे तुम्हारे ही सहारे..अब कुछ नही कहोगे क्या ??
सैय्या भी कठोर है.....और नींद खुली आंखों की.....
तुम बिन सब रिश्ते झूठे..दूरी ये अब बस सांसों की....
हाथ पकड़ के ले जाओ मुझे भी...अब अपने उस लोक में..
क्या मेरे लिए अब तुम ...इतना भी नहीं करोगे क्या ???
लड़कपन में तुम्हें देखा........यौवन में तुम्हें पाया........
बच्चों की कड़ी लेकर जीवन को साथ बढ़ाया.............
नाती पोतों वालों हमने हर पल साथ बिताया..............
ये वक्त सहन नहीं होता...इतनी लंबी यादें फिर भी.......
अंतिम विदा में मुझे ......फिर से नहीं वरोगे क्या??????
ओ तीर के बैठईया !!  .......अब दूर ही रहोगे क्या !!!!!
नहीं मिलोगे क्या ..............….................................
.....................................................................!!!


7 comments:

  1. बहुत बढ़िया।

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  2. वाह! बहुत मधुर और मोहक!!!

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  3. बहुत सुंदर






    ओ सुन लहरों की रानी
    ये जीवन है यूँ ही फ़ानी
    उस किनारे पर जब तू आयेगी
    अपने इंतज़ार में मुझे पायेगी

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  4. शून्य से शिखर तक -----आदि से अनंत तक -- नैया के खिवैया का साथ हो तो जीवन क्या अवसान क्या ! बहुत मनमोहक सृजन अर्पिता जी |

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  5. बहुत बहुत सुन्दर

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ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....