नाम के लिए मरते हैं ये.
नाम के लिए मरते हैं वो..
मगर नाम की गति यही है..
नाम का बटवारा हो जाता है !!
नाम की गहराई खोखली है..
या कि उचाई असीम है..
लेकिन ये तो निश्चित है ..
नाम भी बेसहारा हो जाता है..!!
रंजित कल्पना कह के..मेरी !
नाम के गुणगान कर लेना ..
लेकिन पाओगे तुम भी..
कि नाम कभी मेरा..
कभी तुम्हारा हो जाता है..!!
नामों के मतलब कुछ..
बतलाते जरूर होंगे..
नाम से कुछ प्रतिमान ..
जाने जाते जरूर होंगे..
हर कहानी का शीर्षक भर है नाम..
जिसका एक अंत प्यारा हो जाता है..!!
बहुत सुंदर!! नाम पर ये रोचक चिंतन बढिया है अर्पिता जी। हार्दिक शुभकामनाएं🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteसादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 26-02-2021) को
"कली कुसुम की बांध कलंगी रंग कसुमल भर लाई है" (चर्चा अंक- 3989) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
आपकी अभिव्यक्ति के मर्म को समझने का प्रयास कर रहा हूं अर्पिता जी । वैसे आपकी यह बात बहुत अच्छी है कि जो भी भाव मन में आएं, आप ज्यों-के-त्यों कह देती हैं । ईमानदार और स्वाभाविक अभिव्यक्ति ऐसी ही होती है ।
ReplyDeleteसुन्दर सारगर्भित रचना ..यथार्थ पूर्ण सृजन के लिए बधाई..
ReplyDeleteबढ़िया सारगर्भित रचना के लिए आपको बधाई। नाम के बारे जो भी आपने कहा उससे सहमत।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeleteएक गाना याद आ गया... 'नाम गुम जाएगा......'
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सारगर्भित रचना, अर्पिता दी।
ReplyDeleteबहुत खूब । किसी का नाम हो ,किसी का न हो हर हाल में परेशानी ।
ReplyDeleteताज़ा मुद्दे पर बढ़िया कलम चली है ।
नाम की गहराई खोखली है..
ReplyDeleteया कि उचाई असीम है..
यही समझना तो बहुत कठिन है अर्पिता जी
नाम को समझने और समझाने की बेहतरीन कोशिश,सार्थक सृजन
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
ReplyDeleteनाम वस्तु का बोधक.अस्तित्व का द्योतक - इसी लिये नाम की चाह.
ReplyDeleteउन्होंने प्यार से जो पुकारा मेरा नाम
ReplyDeleteमेरा मन खिल उठा सरे आम
मेरा नाम पुकारना अहम हो सकता है
दिल का खिल jana वहम भी हो सकता है