बहुत से मसले हमने ..कहने को..भगवान पर छोड़े हैं..
खुद कितना बेपरवाह हैं ! ....…..बेखौफ भी यकीनन...
मासूमियत ओढ़े हुए हमने सिर्फ ..तथ्य तोड़े मरोड़े हैं..
दंड संहिता अपनी ..........बनाई है हमने खुद के लिए..
खुद को मांफियां अनगिनत..दूसरे के लिए घड़े पाप के जोड़े हैं.
बहुत से मसले हमने.....फिर क्यों भगवान पर छोड़े हैं !!
मतलबी कितने निकले हम..!! भगवान का नाम भुनाया खूब..
राहें गलत चलते रहे ......फिर उसपर इल्ज़ाम लगाया खूब...
हद भी बहुत पार की हमने..और उसको याद दिलाया खूब...
हो गए बेसुध बेसहारे ......हाथ पैर फिर क्योंकर जोड़े हैं...!!
बहुत से मसले हमने...............क्यों भगवान से जोड़े हैं!!
करने वाले हम ही..........फिर भरने वाले क्योंकर न हों..
सब अपनी करनी भरनी.....बेहतर या दिन बदतर हो....
सब प्रयोजन जब खुद से....परिणाम से क्यों मुंह मोड़ें हैं!!
बहुत से मसले हमारे....उसके कारण भगवान ही थोड़े हैं !!
फिर क्यों ठीकरे हमने............ भगवान पर फोड़े हैं!!
सच में हर बात के लिए ईश्वर दोषी क्यों ! अपनी महत्वाकांक्षाएं और लिप्साएं ! अपनी कामनाएं और अपने अंहकार -प्रतिकार ! फिर भी उसी का दोष ? उसी के सर ठीकरे फूट रहे रोज | बढ़िया चिंतन का उद्घाटन करती रचना अर्पिता जी |
ReplyDeleteआपने अपने विचार अच्छे ढंग से व्यक्त किए हैं अर्पिता जी। आपका ब्लॉग जगत में आगमन अब बहुत कम हो गया है। आशा करता हूँ कि आप स्वस्थ एवं सकुशल होंगी। शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और बिलकुल नवीन |
ReplyDeleteदिल का हाल और सोच के बीच का पुल बांध दिया आपने
ReplyDeleteबहुत सुंदर
सुंदर, सार्थक रचना !........
ReplyDeleteMere Blog Par Aapka Swagat Hai.
बहुत सामयिक रचना
ReplyDeleteप्रत्येक इस में अपना प्रतिबिंब पायेगा 👏👏💐💐